(रात में बेटी के फोन की आवाज़ से जग कर वे,अपना पुराना जीवन याद करने लगती हैं.उनकी चार बेटियों और दो बेटों से घर गुलज़ार रहता. पति गाँव के स्कूल में शिक्षक थे. बड़ी दो बेटियों की शादी हो गयी थी. बड़ा बेटा इंजिनियर था,उसने प्रेम विवाह किया. छोटा बेटा डॉक्टर था, एक अमीर लड़की से शादी कर वह भी, उसके पिता के पैसों से अब विदेश जा रहा था )
गतांक से आगे
बहू पूजा और नमिता के पीछे मीरा भी चली गयीं..पता नहीं तीनो ऊपर वाले कमरे में क्या क्या बतियाती रहीं. बाद में तीनो नीचे आयीं और नमिता , मीरा उसके स्नान का इंतज़ाम करने चली गयीं. नहा कर वो लाल रंग के सलवार सूट, बिंदी और और चूड़ियाँ, यहाँ तक कि पायल भी पहन कर आई तो वे उसे देखती ही रह गयीं. रूप निखर आया था,और चूड़ियाँ ,पायल कुछ ज्यादा ही छनक रहें थे ,लग रहा था उनकी आवाज़ पर मुग्ध हो खुद ही ज्यादा खनका रही थी.
अपनी तरफ यूँ एकटक देखता पा मुस्करा कर बोली.."आप डर गयीं,ना...कि मैं, सिर्फ वैसे कपड़े ही पहनती हूँ, वो तो रास्ते के लिए पहना था सिर्फ. मुझे पता है...गाँव में साड़ी पहनते हैं...पर प्लीज़...मुझसे नहीं संभलेगा"...होठ बिसूरते हुए कहा....फिर बड़े आग्रह से उनकी ओर देखा..."ये चलेगा ना... वैसे तो चुन्नी भी संभालने में कितनी मुश्किल होती है.."दुपट्टा ठीक करती बोली वह.
वे क्या कहतीं...उन्होंने तो उसके पैंट पहनने पर भी कुछ नहीं कहा...जब बेटे को पसंद है तो क्या बोलें वह...वो तो जानता है गाँव के रीती-रिवाज. बोलीं, "तुम्हे जिसमे आराम लगे, वही पहनो.."
उन्होंने सोचा अब तो शायद कमरे के भीतर ही रहेगी, प्रमोद तो खाना खाते ही सो गया था. शाम होने वाली थी. सब काम करनेवालों के आने का समय हो रहा था. पर ये तो बरामदे में रखी कुर्सी पर आराम से बैठ गयी. कहा भी.."बहू जाओ, जरा आराम कर लो"
"ना मुझे अच्छा लग रहा है यहाँ बैठना....और आप मुझे पूजा कहें प्लीज़"
स्कूल से पति लौटे तो लपक कर उनके पैर छुए और वहीँ खड़ी रही. पति अंदर चले गए तो फिर वहीँ बैठ गयी. अब वे क्या कहें? कलावती,सिवनाथ माएँ सब उसे हैरानी से देख रही थीं. मीरा, नमिता तो उसका साथ ही नहीं छोड़ रही थीं. कलावती खाना बनाने लगी तो चौके में जाकर हैरानी से लकड़ी के चूल्हे को देखने लगी."एक दिन मैं भी बनाउंगी ,ऐसे...सिखाओगी मुझे..?"कलावती घुटनों में मुहँ छुपाये हंसने लगी.
सौ सवाल थे उसके..."ये बर्तन के ऊपर मिटटी का लेप क्यूँ लगाते हैं ?"
"बर्तन में कालिख ना लगे इसके लिए "
"तुम कितने आराम से लकड़ी अंदर डाल आंच बढ़ा देती हो...और बाहर खींच कम कर देती हो..वाह जैसे गैस सिम करते हैं...पर हाथ नहीं जलता तुम्हारा?"
"हम गरीब लोगों का हाथ जलेगा...तो काम कैसे करेंगे?"कलावती ने अपना ज्ञान बघारा...तो "हम्म.."करती सोच में पड़ गयी.
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सुबह वे उठकर दातुन कर स्टोव पर पति के लिए चाय बना रही थीं कि पति ने आकर कहा, "बाहर बरामदे में पूजा खड़ी है..."
"हे भगवान अब क्या करें वह"....सुबह सुबह सारे राहगीर अचम्भे से देख रहें होंगे उसे. ये सब बातें लड़कियों को सिखाई नहीं जातीं. अपने घर में, अपने आस-पास देख कर, सब सीख जाती हैं. पर लगता है, इसके तो दादा-परदादा भी शहर में ही पैदा हुए थे. इसे कुछ पता ही नहीं. खीझ गयीं वे. जाकर देखा तो दोनों हाथ बांधे वह सुनहरी कोमल धूप में नहाए, सामने फैले खेत-खलिहान,पेड़-पौधे निरख रही थी.
उन्हें देखते ही बोली..."एकदम हिल-स्टेशन जैसा लग रहा है...कितनी लकी हैं आपलोग, इतनी हरियाली के बीच रहती हैं."
उन्होंने बात बदलते हुए उसे अंदर बुलाने को बहाने से कहा,..."चलो, पूजा अंदर चलो..चाय पियोगी?"
वो साथ में अंदर तो आ गयी...पर बोली.."ना... मैं तो नहा धोकर आपके लिए फूल तोड़ कर लाऊँगी पूजा के लिए"
अब ये और लो...पता नहीं गाँव की कौन सी तस्वीर है इसके मन में..लगता है, फिल्मों में देखा होगा.
"अच्छा पहले नहा तो लो..कलावती आती है तो पानी रख देती है."..कह कर टाल दिया .
नहाने के बाद पूजा, प्रमोद को उठाने में लग गयी...किसी तरह वो औंघाते हुए , बरामदे में कुर्सी पर आकर बैठ गया, "अरे हज़ार घंटे की नींद बाकी है, भाई ....पढ़ाई के दौरान रात- रात भर जाग के काटे हैं.....मौका मिला है तो सोने दो,ना...तुम नमिता,मीरा के साथ चली जाओ गाँव घूमने "
उनके काम करते हाथ जहाँ के तहां रुक गए...."गाँव घूमने...."अब ये कौन सा नया चक्कर शुरू हो गया.
वो नमिता,मीरा को बुलाने उनके कमरे में गयी तो वे भागकर प्रमोद के पास आ गयीं "ये क्या कह रहा है...बहुएं दिन के उजाले में बाहर जाती हैं क्या?...तुझे तो सब पता है."
"पता है माँ...पर क्या करूँ....ये मानेगी नहीं...घूमने गए तो वहीँ से दूसरे दिन से हल्ला...घर चलो..मुझे गाँव देखना है...तभी हम इतनी जल्दी लौट आए . इसे गाँव देखने का बहुत शौक है....पता नहीं किताबों में क्या क्या पढ़ रखा है..और फिल्मों में क्या देखा है...अगर इसे उपले पाथने या दूध दुहने को कहोगी ना, तब भी मान जाएगी. जब हमारे आँगन में हैंडपंप देखा तो बड़ी निराश हो गयी...बोली,'कुएं से पानी क्यूँ नहीं लाते..मैं भी बड़े से पीतल के गागर में पानी भर के लाती"
हंस पड़ीं वे, पूजा का 'घर 'का संबोधन कहीं अच्छा भी लगा..फिर भी आशंकित थीं,"बेटा पर दिन के उजाले में कैसे घूमेगी ? ...गाड़ी से घुमा दे..क्या कहेंगे गांववाले ?"
"कहेंगे ...मास्टर साहब की छोटी बहू पागल है...और सचमुच वो गाँव देखने के पीछे पागल ही है."फिर थोड़ा सोचता हुआ बोला..."माँ पर एक तरह से ठीक ही है..पूजा की देखा-देखी और भी बहुएं दिन के उजाले में निकल कर घूम सकेंगी. तुम ही बताओ...क्या तुम्हारा मन नहीं हुआ कभी वो आम का बगीचा देखूं..नीम के पेड़ देखूं ?...नहर देखूं ? केवल सब से सुन सुन कर संतोष करती रही.....जाने दो, घूमने दो इसे...और मना करोगी तो वो सत्याग्रह कर देगी...नमिता से कम नहीं...."और हँसता हुआ चला गया...दातुन-कुल्ला करने.
वे लौट आयीं अपनी जगह..पर एक सवाल चलता रहा दिमाग में "क्या तुम्हारा मन नहीं हुआ?" ..क्या सचमुच उनके मन में कभी कोई इच्छा नहीं जागी? बस उन्होंने स्थिति को आँखें बंद कर स्वीकार कर लिया. उनका एक मन भी है..वह भी कुछ चाह सकता है, मांग सकता है...कभी ऐसे सोचा ही नहीं. जैसे जैसे सास-ससुर-पति कहते गए करती गयीं. उन्होंने कभी अपने मन से क्यूँ नहीं पूछा कि 'उसे क्या चाहिए?'शायद कभी मन ने चाहा होता तो कोई राह निकल ही आती. या उनके मन का नहीं हो पायेगा ऐसा सोच वे निराशा से बचने की कोशिश करती रहीं. खुद को दुख और निराशा से बचाने का यह कोई अनजाना प्रयास था, क्या? पता नहीं कब तक सोचती रहतीं अगर नमिता ने आकर आशंकित मन से नहीं पूछा होता, "भाभी को लेकर जाऊं बाग़-बगीचे , नहर दिखाने?"
हँ जाओ..पर नाश्ते के बाद..."
"मीरा मैं ना कहती थी...माँ मना नहीं करेगी..चल जल्दी तैयार हो जा.."कहती नमिता उछलती कूदती चली गयी.
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उन्हें पता था, गाँव में यह खबर आग की तरह फ़ैल गयी होगी और किसी ना किसी बहाने लोग उनके घर आयेंगे टोह लेने और उलाहना देने.
अच्छा हुआ जब , कैलास की माँ और शम्भू की चाची आयीं तो पूजा थक कर सो गयी थी. "का ममता की माँ, नईकी बहू के मायके की सब मिठाई अकेले अकेले खा लोगी"
"नहीं, मैं बस आज ही भेजने वाली थी...कलावती से "
"आ... ई का सुन रहें हैं..बिजली बता रहा था कि नईकी बहू खेते खेते....बगीचे बगीचे...मुहँ उघारे सलवार कमीज़ पहने घूम रही थी."
"हाँ , उसने गाँव नहीं देखा ना...और अब विदेश जा रही है...फिर कब देखना नसीब हो अपना देस, अपनी धरती...इसीलिए भेज दिया "वे कभी भी अपने बच्चों की या घर की बड़ाई नहीं बघारातीं थीं ...पर यहाँ बात मोड़ने के लिए जरूरी था.
"बिदेस...प्रमोद बबुआ बिदेस जा रहा है...?"उन दोनों का मुहँ खुला का खुला रह गया.
"हाँ, आगे और पढ़ाई करेगा...हमारी कहाँ औकात थी, विदेस भेजने की, दान- दहेज़ नहीं लिया तो बहू के पिताजी ने विदेस भेजने की बात कही...ठीक है, उनकी लड़की ही 'फौरेन रिटर्न डाक्टर'की बीवी कहलाएगी"
"हाँ वो तो है...पर जो कहो...जोड़ी नहीं है...कहाँ प्रमोद...राम जी जैसा सुन्दर....बहू..उसके सामने तनिक फीकी पड़ जाती है...जोड़ी नहीं जमती "वे लोग कहाँ चूकने वाली थीं.
इस बार दरवाजे से आती सिवनाथ माएँ ने संभाल ली, "शम्भू की चाची...पिरार्थाना करो कि तुम्हारी बिटिया को भी एहेन दामाद, मिले."
उनकी बेटी का रंग भी दबा हुआ था. सो चुप रहीं दोनों. उन्होंने मिठाई की प्लेट सामने रखी. उसे ख़त्म कर जल्दी से चली गयीं वे लोग. अब गाँव में पूजा के गाँव घूमने से ज्यादा बड़ी खबर प्रमोद के विदेश जाने की थी . सबको बताना होगा,जाकर. पहले जानने का सुख लूटने की बात ही अलग.
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पूजा हफ्ते भर रही. वह रम गयी थी,गाँव की ज़िन्दगी में. बिजली तो गाँव में रहती ही नहीं. वह छत पर देर तक तारों की छाँव में बैठी रहती. दिन में नमिता-मीरा के साथ गोटियाँ खेलना सीखती. नए नए व्यंजन शौक से खाती. कभी कभी उनसे पूछ , अपनी डायरी में भी नोट करती जाती. प्रमोद तो कुम्भकरण का अवतार ही लिए हुए था. सिर्फ खाता और सो जाता.
पति को घर के आस-पास फूल और सब्जियां लगाने का बड़ा शौक था. खुद ही इसकी देखभाल किया करते. पूजा भी अक्सर सुबह और शाम दोनों समय उनके साथ लगी होती और सैकड़ों सवाल पूछती. वह मटर की फलियाँ, टमाटर,बैंगन,मिर्ची देख खुश हो जाती.और अपने हाथों से तोड़ने की जिद करती. छोटी सी टोकरी लेकर जाती और कुछ सब्जियां तोड़ लाती. एक दिन ढेर सारी मिर्ची तोड़ लाई. इतनी जलन हुई उन मेहँदी रचे हाथों में , शहद का लेप करना पड़ा. कई बार सब्जियां तैयार नहीं हुई होतीं.पर उसका बच्चों सा उत्साह देख पति कुछ नहीं कहते. पति के इस शौक में किसी बच्चे ने कभी हिस्सा नहीं लिया, उन्हें भी अच्छा लगता.
प्रमोद कभी कह भी देता...'आजतक पापाजी को इतनी देर तक किसी से बतियाते नहीं देखा. पता नहीं क्या सर खाती रहती है'
"अब ये ससुर-बहू जानें, तू क्यूँ परेशान हो रहा है? ..."वे मुस्कुरा कर उसे आश्वस्त करतीं.
पूजा शायद और रुक जाती पर प्रमोद को ही शहर में काम था. विदेश जाने के कागज़ पत्तर तैयार करने थे. पूजा जब विदा होकर गयी तो लगा, ममता या स्मिता ही जा रही हैं. उसकी भी आँखें भरी भरी थीं.
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नमिता कॉलेज में आ गयी थी. अब तो उसी कॉलेज में बी.ए. की भी पढ़ाई होने लगी थी. पति का बेटियों को बी.ए. पढ़ाने का सपना पूरा होता दिख रहा था. वे सोचतीं, वैसे भी अभी पैसे कहाँ हैं जो शादी हो पायेगी...समय लगेगा तब तक बी.ए. तो कर ही लेगी.
प्रमोद, और पूजा सिर्फ दो दिन के लिए आए इस बार. शादी के पहले से ही सारी लिखा-पढ़ी चल रही थी. अब सब तय हो गया था और उन्हें अगले हफ्ते विदेश के लिए हवाई जहाज में बैठना था. आजतक बस आँगन से आकाश में उड़ते जहाज को देखा करती थीं. आज उसमे उनके बेटा बहू बैठनेवाले थे. उन्हें गर्व भी हो रहा था और विछोह की पीड़ा से छाती भी ऐंठ रही थी. अब पूरे एक साल बाद ही आ पायेगा. इतने दिन उसका मुहँ देखे बिना कैसे रहेंगी?
पूजा,मीरा और नमिता के लिए एक टी.वी. लेकर आई थी. मीरा खुश हो गयी पर दूसरे ही पल बुझी आवाज़ में बोली, ..."पर भाभी,बिजली कहाँ रहती है, यहाँ?"
"मैं बाज़ार से बैटरी और चार्जर का इंतज़ाम कर देता हूँ,...तुमलोग देखा करो...दीन दुनिया की खबरें मिलेगी,पर नमिता..सिर्फ फिल्मे और गाने ही मत देखना."
प्रमोद और नमिता तो चले गए, उनके पापाजी और मीरा शहर तक उनके साथ गए. इस बार नमिता ने ही कहा, माँ अकेली कैसे रहेगी? मीरा को ले जाइए.
प्रमोद तो नमिता को हिदायत दे गया, ज्यादा फिल्मे मत देखना.पर नमिता की नज़र तो टी.वी.से हटती ही नहीं.चाहे कुछ भी आ रहा हो,वह देखा करती. और अब उसे बनने संवारने का भी शौक होने लगा था.
उनकी सारी बेटियाँ सुन्दर थीं. पर ममता और स्मिता का रूप बदली में छुपे चाँद जैसा था. जबकि नमिता का रूप पूरनमासी की चाँद की तरह चमकता रहता. वह टी.वी. में देख देख के दरजी काका को अपने कपड़े की डिजाइन बताती. उन्हें लगा दरजी काका खुद ही टाल देंगे.पर वे भी शायद सीधा -सादा सलवार कुरता सिल कर तंग आ गए थे. नमिता की बात ध्यान से सुनते और देर तक उस से डिजाइन समझते.फिर वैसा ही सिल कर ला देते. बाल बनाने के तरीके में भी वो टी.वी. में बोलने वाली लड़कियों की नक़ल करती.लगता ही नहीं उनकी बेटी कभी गाँव से बाहर नहीं गयी.
इंटर पास करके बी.ए. पार्ट वन में आ गयी नमिता. ब्लॉक में एक नए अफसर आए थे. उनकी बेटी नमिता की अच्छी सहेली बन गयी. पर उसका एक बड़ा भाई भी था.इंजीनियरिंग पढ़ रहा था, छुट्टियों में घर आता तो नमिता और अपनी बहन नीना के साथ ही बाग़-बगीचे में घूमता रहता. उसके गाँव में कोई दोस्त नहीं थे.पर उन्हें नमिता का उसके यहाँ जाना अच्छा नहीं लगता.
(क्रमशः)
गतांक से आगे
बहू पूजा और नमिता के पीछे मीरा भी चली गयीं..पता नहीं तीनो ऊपर वाले कमरे में क्या क्या बतियाती रहीं. बाद में तीनो नीचे आयीं और नमिता , मीरा उसके स्नान का इंतज़ाम करने चली गयीं. नहा कर वो लाल रंग के सलवार सूट, बिंदी और और चूड़ियाँ, यहाँ तक कि पायल भी पहन कर आई तो वे उसे देखती ही रह गयीं. रूप निखर आया था,और चूड़ियाँ ,पायल कुछ ज्यादा ही छनक रहें थे ,लग रहा था उनकी आवाज़ पर मुग्ध हो खुद ही ज्यादा खनका रही थी.
अपनी तरफ यूँ एकटक देखता पा मुस्करा कर बोली.."आप डर गयीं,ना...कि मैं, सिर्फ वैसे कपड़े ही पहनती हूँ, वो तो रास्ते के लिए पहना था सिर्फ. मुझे पता है...गाँव में साड़ी पहनते हैं...पर प्लीज़...मुझसे नहीं संभलेगा"...होठ बिसूरते हुए कहा....फिर बड़े आग्रह से उनकी ओर देखा..."ये चलेगा ना... वैसे तो चुन्नी भी संभालने में कितनी मुश्किल होती है.."दुपट्टा ठीक करती बोली वह.
वे क्या कहतीं...उन्होंने तो उसके पैंट पहनने पर भी कुछ नहीं कहा...जब बेटे को पसंद है तो क्या बोलें वह...वो तो जानता है गाँव के रीती-रिवाज. बोलीं, "तुम्हे जिसमे आराम लगे, वही पहनो.."
उन्होंने सोचा अब तो शायद कमरे के भीतर ही रहेगी, प्रमोद तो खाना खाते ही सो गया था. शाम होने वाली थी. सब काम करनेवालों के आने का समय हो रहा था. पर ये तो बरामदे में रखी कुर्सी पर आराम से बैठ गयी. कहा भी.."बहू जाओ, जरा आराम कर लो"
"ना मुझे अच्छा लग रहा है यहाँ बैठना....और आप मुझे पूजा कहें प्लीज़"
स्कूल से पति लौटे तो लपक कर उनके पैर छुए और वहीँ खड़ी रही. पति अंदर चले गए तो फिर वहीँ बैठ गयी. अब वे क्या कहें? कलावती,सिवनाथ माएँ सब उसे हैरानी से देख रही थीं. मीरा, नमिता तो उसका साथ ही नहीं छोड़ रही थीं. कलावती खाना बनाने लगी तो चौके में जाकर हैरानी से लकड़ी के चूल्हे को देखने लगी."एक दिन मैं भी बनाउंगी ,ऐसे...सिखाओगी मुझे..?"कलावती घुटनों में मुहँ छुपाये हंसने लगी.
सौ सवाल थे उसके..."ये बर्तन के ऊपर मिटटी का लेप क्यूँ लगाते हैं ?"
"बर्तन में कालिख ना लगे इसके लिए "
"तुम कितने आराम से लकड़ी अंदर डाल आंच बढ़ा देती हो...और बाहर खींच कम कर देती हो..वाह जैसे गैस सिम करते हैं...पर हाथ नहीं जलता तुम्हारा?"
"हम गरीब लोगों का हाथ जलेगा...तो काम कैसे करेंगे?"कलावती ने अपना ज्ञान बघारा...तो "हम्म.."करती सोच में पड़ गयी.
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सुबह वे उठकर दातुन कर स्टोव पर पति के लिए चाय बना रही थीं कि पति ने आकर कहा, "बाहर बरामदे में पूजा खड़ी है..."
"हे भगवान अब क्या करें वह"....सुबह सुबह सारे राहगीर अचम्भे से देख रहें होंगे उसे. ये सब बातें लड़कियों को सिखाई नहीं जातीं. अपने घर में, अपने आस-पास देख कर, सब सीख जाती हैं. पर लगता है, इसके तो दादा-परदादा भी शहर में ही पैदा हुए थे. इसे कुछ पता ही नहीं. खीझ गयीं वे. जाकर देखा तो दोनों हाथ बांधे वह सुनहरी कोमल धूप में नहाए, सामने फैले खेत-खलिहान,पेड़-पौधे निरख रही थी.
उन्हें देखते ही बोली..."एकदम हिल-स्टेशन जैसा लग रहा है...कितनी लकी हैं आपलोग, इतनी हरियाली के बीच रहती हैं."
उन्होंने बात बदलते हुए उसे अंदर बुलाने को बहाने से कहा,..."चलो, पूजा अंदर चलो..चाय पियोगी?"
वो साथ में अंदर तो आ गयी...पर बोली.."ना... मैं तो नहा धोकर आपके लिए फूल तोड़ कर लाऊँगी पूजा के लिए"
अब ये और लो...पता नहीं गाँव की कौन सी तस्वीर है इसके मन में..लगता है, फिल्मों में देखा होगा.
"अच्छा पहले नहा तो लो..कलावती आती है तो पानी रख देती है."..कह कर टाल दिया .
नहाने के बाद पूजा, प्रमोद को उठाने में लग गयी...किसी तरह वो औंघाते हुए , बरामदे में कुर्सी पर आकर बैठ गया, "अरे हज़ार घंटे की नींद बाकी है, भाई ....पढ़ाई के दौरान रात- रात भर जाग के काटे हैं.....मौका मिला है तो सोने दो,ना...तुम नमिता,मीरा के साथ चली जाओ गाँव घूमने "
उनके काम करते हाथ जहाँ के तहां रुक गए...."गाँव घूमने...."अब ये कौन सा नया चक्कर शुरू हो गया.
वो नमिता,मीरा को बुलाने उनके कमरे में गयी तो वे भागकर प्रमोद के पास आ गयीं "ये क्या कह रहा है...बहुएं दिन के उजाले में बाहर जाती हैं क्या?...तुझे तो सब पता है."
"पता है माँ...पर क्या करूँ....ये मानेगी नहीं...घूमने गए तो वहीँ से दूसरे दिन से हल्ला...घर चलो..मुझे गाँव देखना है...तभी हम इतनी जल्दी लौट आए . इसे गाँव देखने का बहुत शौक है....पता नहीं किताबों में क्या क्या पढ़ रखा है..और फिल्मों में क्या देखा है...अगर इसे उपले पाथने या दूध दुहने को कहोगी ना, तब भी मान जाएगी. जब हमारे आँगन में हैंडपंप देखा तो बड़ी निराश हो गयी...बोली,'कुएं से पानी क्यूँ नहीं लाते..मैं भी बड़े से पीतल के गागर में पानी भर के लाती"
हंस पड़ीं वे, पूजा का 'घर 'का संबोधन कहीं अच्छा भी लगा..फिर भी आशंकित थीं,"बेटा पर दिन के उजाले में कैसे घूमेगी ? ...गाड़ी से घुमा दे..क्या कहेंगे गांववाले ?"
"कहेंगे ...मास्टर साहब की छोटी बहू पागल है...और सचमुच वो गाँव देखने के पीछे पागल ही है."फिर थोड़ा सोचता हुआ बोला..."माँ पर एक तरह से ठीक ही है..पूजा की देखा-देखी और भी बहुएं दिन के उजाले में निकल कर घूम सकेंगी. तुम ही बताओ...क्या तुम्हारा मन नहीं हुआ कभी वो आम का बगीचा देखूं..नीम के पेड़ देखूं ?...नहर देखूं ? केवल सब से सुन सुन कर संतोष करती रही.....जाने दो, घूमने दो इसे...और मना करोगी तो वो सत्याग्रह कर देगी...नमिता से कम नहीं...."और हँसता हुआ चला गया...दातुन-कुल्ला करने.
वे लौट आयीं अपनी जगह..पर एक सवाल चलता रहा दिमाग में "क्या तुम्हारा मन नहीं हुआ?" ..क्या सचमुच उनके मन में कभी कोई इच्छा नहीं जागी? बस उन्होंने स्थिति को आँखें बंद कर स्वीकार कर लिया. उनका एक मन भी है..वह भी कुछ चाह सकता है, मांग सकता है...कभी ऐसे सोचा ही नहीं. जैसे जैसे सास-ससुर-पति कहते गए करती गयीं. उन्होंने कभी अपने मन से क्यूँ नहीं पूछा कि 'उसे क्या चाहिए?'शायद कभी मन ने चाहा होता तो कोई राह निकल ही आती. या उनके मन का नहीं हो पायेगा ऐसा सोच वे निराशा से बचने की कोशिश करती रहीं. खुद को दुख और निराशा से बचाने का यह कोई अनजाना प्रयास था, क्या? पता नहीं कब तक सोचती रहतीं अगर नमिता ने आकर आशंकित मन से नहीं पूछा होता, "भाभी को लेकर जाऊं बाग़-बगीचे , नहर दिखाने?"
हँ जाओ..पर नाश्ते के बाद..."
"मीरा मैं ना कहती थी...माँ मना नहीं करेगी..चल जल्दी तैयार हो जा.."कहती नमिता उछलती कूदती चली गयी.
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उन्हें पता था, गाँव में यह खबर आग की तरह फ़ैल गयी होगी और किसी ना किसी बहाने लोग उनके घर आयेंगे टोह लेने और उलाहना देने.
अच्छा हुआ जब , कैलास की माँ और शम्भू की चाची आयीं तो पूजा थक कर सो गयी थी. "का ममता की माँ, नईकी बहू के मायके की सब मिठाई अकेले अकेले खा लोगी"
"नहीं, मैं बस आज ही भेजने वाली थी...कलावती से "
"आ... ई का सुन रहें हैं..बिजली बता रहा था कि नईकी बहू खेते खेते....बगीचे बगीचे...मुहँ उघारे सलवार कमीज़ पहने घूम रही थी."
"हाँ , उसने गाँव नहीं देखा ना...और अब विदेश जा रही है...फिर कब देखना नसीब हो अपना देस, अपनी धरती...इसीलिए भेज दिया "वे कभी भी अपने बच्चों की या घर की बड़ाई नहीं बघारातीं थीं ...पर यहाँ बात मोड़ने के लिए जरूरी था.
"बिदेस...प्रमोद बबुआ बिदेस जा रहा है...?"उन दोनों का मुहँ खुला का खुला रह गया.
"हाँ, आगे और पढ़ाई करेगा...हमारी कहाँ औकात थी, विदेस भेजने की, दान- दहेज़ नहीं लिया तो बहू के पिताजी ने विदेस भेजने की बात कही...ठीक है, उनकी लड़की ही 'फौरेन रिटर्न डाक्टर'की बीवी कहलाएगी"
"हाँ वो तो है...पर जो कहो...जोड़ी नहीं है...कहाँ प्रमोद...राम जी जैसा सुन्दर....बहू..उसके सामने तनिक फीकी पड़ जाती है...जोड़ी नहीं जमती "वे लोग कहाँ चूकने वाली थीं.
इस बार दरवाजे से आती सिवनाथ माएँ ने संभाल ली, "शम्भू की चाची...पिरार्थाना करो कि तुम्हारी बिटिया को भी एहेन दामाद, मिले."
उनकी बेटी का रंग भी दबा हुआ था. सो चुप रहीं दोनों. उन्होंने मिठाई की प्लेट सामने रखी. उसे ख़त्म कर जल्दी से चली गयीं वे लोग. अब गाँव में पूजा के गाँव घूमने से ज्यादा बड़ी खबर प्रमोद के विदेश जाने की थी . सबको बताना होगा,जाकर. पहले जानने का सुख लूटने की बात ही अलग.
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पूजा हफ्ते भर रही. वह रम गयी थी,गाँव की ज़िन्दगी में. बिजली तो गाँव में रहती ही नहीं. वह छत पर देर तक तारों की छाँव में बैठी रहती. दिन में नमिता-मीरा के साथ गोटियाँ खेलना सीखती. नए नए व्यंजन शौक से खाती. कभी कभी उनसे पूछ , अपनी डायरी में भी नोट करती जाती. प्रमोद तो कुम्भकरण का अवतार ही लिए हुए था. सिर्फ खाता और सो जाता.
पति को घर के आस-पास फूल और सब्जियां लगाने का बड़ा शौक था. खुद ही इसकी देखभाल किया करते. पूजा भी अक्सर सुबह और शाम दोनों समय उनके साथ लगी होती और सैकड़ों सवाल पूछती. वह मटर की फलियाँ, टमाटर,बैंगन,मिर्ची देख खुश हो जाती.और अपने हाथों से तोड़ने की जिद करती. छोटी सी टोकरी लेकर जाती और कुछ सब्जियां तोड़ लाती. एक दिन ढेर सारी मिर्ची तोड़ लाई. इतनी जलन हुई उन मेहँदी रचे हाथों में , शहद का लेप करना पड़ा. कई बार सब्जियां तैयार नहीं हुई होतीं.पर उसका बच्चों सा उत्साह देख पति कुछ नहीं कहते. पति के इस शौक में किसी बच्चे ने कभी हिस्सा नहीं लिया, उन्हें भी अच्छा लगता.
प्रमोद कभी कह भी देता...'आजतक पापाजी को इतनी देर तक किसी से बतियाते नहीं देखा. पता नहीं क्या सर खाती रहती है'
"अब ये ससुर-बहू जानें, तू क्यूँ परेशान हो रहा है? ..."वे मुस्कुरा कर उसे आश्वस्त करतीं.
पूजा शायद और रुक जाती पर प्रमोद को ही शहर में काम था. विदेश जाने के कागज़ पत्तर तैयार करने थे. पूजा जब विदा होकर गयी तो लगा, ममता या स्मिता ही जा रही हैं. उसकी भी आँखें भरी भरी थीं.
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नमिता कॉलेज में आ गयी थी. अब तो उसी कॉलेज में बी.ए. की भी पढ़ाई होने लगी थी. पति का बेटियों को बी.ए. पढ़ाने का सपना पूरा होता दिख रहा था. वे सोचतीं, वैसे भी अभी पैसे कहाँ हैं जो शादी हो पायेगी...समय लगेगा तब तक बी.ए. तो कर ही लेगी.
प्रमोद, और पूजा सिर्फ दो दिन के लिए आए इस बार. शादी के पहले से ही सारी लिखा-पढ़ी चल रही थी. अब सब तय हो गया था और उन्हें अगले हफ्ते विदेश के लिए हवाई जहाज में बैठना था. आजतक बस आँगन से आकाश में उड़ते जहाज को देखा करती थीं. आज उसमे उनके बेटा बहू बैठनेवाले थे. उन्हें गर्व भी हो रहा था और विछोह की पीड़ा से छाती भी ऐंठ रही थी. अब पूरे एक साल बाद ही आ पायेगा. इतने दिन उसका मुहँ देखे बिना कैसे रहेंगी?
पूजा,मीरा और नमिता के लिए एक टी.वी. लेकर आई थी. मीरा खुश हो गयी पर दूसरे ही पल बुझी आवाज़ में बोली, ..."पर भाभी,बिजली कहाँ रहती है, यहाँ?"
"मैं बाज़ार से बैटरी और चार्जर का इंतज़ाम कर देता हूँ,...तुमलोग देखा करो...दीन दुनिया की खबरें मिलेगी,पर नमिता..सिर्फ फिल्मे और गाने ही मत देखना."
प्रमोद और नमिता तो चले गए, उनके पापाजी और मीरा शहर तक उनके साथ गए. इस बार नमिता ने ही कहा, माँ अकेली कैसे रहेगी? मीरा को ले जाइए.
प्रमोद तो नमिता को हिदायत दे गया, ज्यादा फिल्मे मत देखना.पर नमिता की नज़र तो टी.वी.से हटती ही नहीं.चाहे कुछ भी आ रहा हो,वह देखा करती. और अब उसे बनने संवारने का भी शौक होने लगा था.
उनकी सारी बेटियाँ सुन्दर थीं. पर ममता और स्मिता का रूप बदली में छुपे चाँद जैसा था. जबकि नमिता का रूप पूरनमासी की चाँद की तरह चमकता रहता. वह टी.वी. में देख देख के दरजी काका को अपने कपड़े की डिजाइन बताती. उन्हें लगा दरजी काका खुद ही टाल देंगे.पर वे भी शायद सीधा -सादा सलवार कुरता सिल कर तंग आ गए थे. नमिता की बात ध्यान से सुनते और देर तक उस से डिजाइन समझते.फिर वैसा ही सिल कर ला देते. बाल बनाने के तरीके में भी वो टी.वी. में बोलने वाली लड़कियों की नक़ल करती.लगता ही नहीं उनकी बेटी कभी गाँव से बाहर नहीं गयी.
इंटर पास करके बी.ए. पार्ट वन में आ गयी नमिता. ब्लॉक में एक नए अफसर आए थे. उनकी बेटी नमिता की अच्छी सहेली बन गयी. पर उसका एक बड़ा भाई भी था.इंजीनियरिंग पढ़ रहा था, छुट्टियों में घर आता तो नमिता और अपनी बहन नीना के साथ ही बाग़-बगीचे में घूमता रहता. उसके गाँव में कोई दोस्त नहीं थे.पर उन्हें नमिता का उसके यहाँ जाना अच्छा नहीं लगता.
(क्रमशः)